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चित्तरंजन रेलइंजन कारखाना (चिरेका) राष्ट्र के स्वप्नद्रष्टाओं का एक सपना था जो सच साबित हुआ।इस राष्ट्र के योजनाकारों ने अपनी अंतर्दृष्टि एवं दूरदृष्टि से पश्चिम बंगाल में एक रेलइंजन निर्माण कारखाना स्थापित करने की योजना बनाई और चिरेका इस सपने को पूरा करने के लिए सफल साबित हुआ। विगत तीस के दशक में, मेसर्स हमफ्रीएवं श्रीनिवासन के नेतृत्व में एक रेलइंजन निर्माण इकाई की स्थापना की संभावनाओं तथा इसकी आर्थिक क्षमता की जांच करने हेतु एक समिति गठित की गई। पश्चिम बंगाल राज्य में काँचरापाड़ा के निकट चाँदमारी नामक स्थान पर प्रारंभिक परियोजना देश के विभाजन के कारण विकसित नहीं हो सकी जिसके कारण स्थान परिवर्तन करना आवश्यक हो गया। रेलइंजन निर्माण कारखाना स्थापित करने का मुद्दाकेन्द्रीय विधान-मंडल के सक्रिय विचाराधीन निरंतर रहा और दिसम्बर, 1947 को रेलवे बोर्ड ने मिहिजाम के निकट चित्तरंजन में फैक्टरी स्थापित करने का निर्णय लिया। 9 जनवरी, 1948 को प्रस्तावित क्षेत्र के सर्वेक्षण कार्य प्रारंभ किया गया। यहाँ की पथरीली भूमि संरचनात्मक कार्य के परिनिर्माण नींव हेतु काफी उपयोगी सिद्ध हुई तथा उबड़-खाबड़ भू-भाग ने नगरी के जल निकास की समस्या को सुलझा दिया जबकि हाइड्रो-इलेक्ट्रिक योजना एवं आस-पास के सन्निकट थर्मल पावर स्टेशनों से ईंधन के लिए पर्याप्त बिजली की प्राप्ति सुनिश्चित हुई।
यह देश में विद्युत रेलइंजन का एकमात्र प्रमुख निर्माता है। यह पश्चिम बंगाल और झारखंड की सीमा पर स्थित है और आसनसोल से लगभग 32 किलोमीटर तथा कोलकाता से 237 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आज जिस स्थान पर चिरेका स्थित है, वहाँ वास्तव में पहले छोटे-छोटे गाँवों का समूह था। रेलइंजन कारखाना के पास अपने सहायक कारखानों सहित कोलकाता में एक भंडार क्रय कार्यालय तथा नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता एवं बंगलौर में निरीक्षण सेल हैं। कारखाना एवं नगरी 18.34 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है।

1968 के दौरान डीजल हाइड्रॉलिक रेलइंजनों का उत्पादन शुरू हुआ। 5 प्रकार के 2351 वाष्प रेलइंजन और 7 प्रकार के 842 डीजल हाइड्रॉलिक रेलइंजनों का विनिर्माण करने के बाद वाष्प और डीजल हाइड्रॉलिक रेलइंजनों का उत्पादन क्रमशः 1973-74 एवं 1993-94 से बंद कर दिया गया।
वर्ष 1961 में विद्युत रेलइंजनो का उत्पादन प्रारंभ किया गया। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 14 अक्टूबर 1961 को प्रथम 1500 वोल्ट डीसी रेलइंजन लोकमान्य का शुभारंभ किया। 25 केवी एसीडीसी रेलइंजनों का उत्पादन 16 नवम्बर 1963 से प्रारंभ हुआ। चिरेका द्वारा 2840 अश्वशक्ति का एक ब्रॉड गेज 25 केवीएसी अधिकतम गति 80 कि.मी घंटा का मालवाही प्रथम विद्युत रेलइंजन विधान (डब्ल्यूएजी-1) निकाला गया। पश्चिम रेलवे में बीआरसी से बीसीटी तक मेल/एक्सप्रेस रेलगाड़ियों को खींचने के लिए चिरेका ने 25 केवीएसी/1500 वोल्ट डीसी, एसी/डीसी रेलइंजन भी निर्मित किए।
चिरेका अत्याधुनिक 3 फेज़ जीटीओ थॉयस्सिटर नियंत्रित विद्युत रेलइंजन एवं प्रथम स्वदेशी रूप से निर्मित 6000 अश्वशक्ति मालवाही विद्युत रेलइंजन डबल्यूएजी-9 का विनिर्माण कर विकासशील देशों में प्रथम, एशिया में द्वितीय एवं विश्व में पांचवी उत्पादन इकाई है। इसे नवयुग नाम दिया गया एवं इसे 14 नवम्बर, 1998 से चालू किया गया।

वर्ष 2000-01 में 3 फेज़ डब्ल्यूएपी-5 रेलइंजन नवोदित के यात्रीवाही वर्जन 160 कि.मी. प्रतिघंटा अधिकतम सेवा अवधि एवं 200 कि.मी./प्रति घंटा तक संभावित गति का विनिर्माण किया गया। 3 फेज़ रेलइंजनों के स्त्रोतों का विकास, स्वदेशीकरण तथा लागत में कमी उच्च प्रथमिकता वाली मदें हैं। आयायित 3 फेज़ रेलइंजन की उच्चतम लागत रू.35 करोड़ से घटाकर लगभग रू.10.42 करोड़ की गई। आशा है कि इसमें और अधिक कमी आएगी यदि चिरेका द्वारा इस प्रकार के रेलइंजन उत्पादन में वृद्धि की जाए।
डीसी कर्षण मोटर एवं नियंत्रण उपकरणों का उत्पादन अप्रैल 1967 में प्रारंभ किया गया। रेलइंजन पुर्जों की इस्पात ढलाई के विनिर्माण के लिए वर्ष 1962-63 में इस्पात फाउण्ड्री की स्थापना की गई। चिरेका में व्हील सेटों की मशीनिंग और एसेम्बली, बोगियों के फेब्रीकेशन व मशीनिंग आदि सुविधाएँ घरेलू स्तर पर मौजूद हैं। इनमें आधुनिक सीएनसी मशीनें, प्लाज्मा-कटिंग मशीनें, इनर्ट गैस वेल्डिंग सेट आदि सुविधाएं शामिल हैं।
चिरेका के उत्तरी क्षेत्र से होकर अजय नदी बहती है। कारखाना कार्यालय एवं क्वाटर चारों ओर से हरे-भरे पेड़ों एवं वृक्षों से घिरे हुए हैं एवं इनके बीच पर्याप्त दूरी है। यहां अनेक जलाशय हैं जो हरे-भरे पर्यावरण को दर्शाते हैं। ये जलाशय प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करते हैं। सालभर यहां विभिन्न प्रकार के वनस्पति एवं जीव जन्तु देखे जा सकते हैं।
पर्यावरण के प्रति सजग होने के बहुत पहले ही चिरेका प्रशासन ने शुष्क क्षेत्र को हरा-भरा बनाने के लिए वृक्षारोपण प्रारंभ किया। वर्ष 1996 में पश्चिम बंगाल सरकार के सोशल फॉरेस्ट्री डिविजन की मदद से 90,000 छोट-छोटे पौधे लगाए । वर्ष 2005 में भी 50,000 छोटे पौधे लगाए गए एवं प्रशासन लगातार कर्मचारियों को पर्यावरण के प्रति जागरूक और परिरक्षित करने के लिए प्रोत्साहित करता रहता है।ऐसे प्रयास को विश्व पर्यावरण फाउंडेशन ने मान्यता प्रदान की है एवं चिरेका को 9 जून 2006 को पर्यावरण प्रबंधन के लिए स्वर्ण मयूर पुरस्कार 2006 से नवाजा गया।
चिरेका ने हाल के वर्षों में धीरे-धीरे अपनी उत्पादन क्षमता और निर्माण श्रेणी में वृद्धि की है। पिछले पांच वर्षों के दौरान ( 31.03.2022 तक) सीएलडब्ल्यू ने अपने उत्पादन को 350 से बढ़ाकर 486 लोको प्रति वर्ष कर दिया है।